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विश्वमूर्तिर्महामूर्तिर्दीप्तमूर्तिरमूर्तिमान् । अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ॥ ७७॥
722. Visvamurtih: He Who has the Universe as His body. 723. Mahamurtih: He of Immense form. 724. Diptamurtih: He with a shining form. 725. Amurtiman: He Who has no fixed Forms. 726. Anekamurtaye: He of many forms. 727. Avyaktaha: He Who cannot be easily realized. 728. Satamurtisa: He with a hundred forms. 729. satanana: He Who is many-faced.
722. विश्वमूर्तिः: वह जिनका शरीर सम्पूर्ण ब्रह्मांड है। 723. महामूर्तिः: अत्यन्त बड़े आकार वाले वह। 724. दीप्तमूर्तिः: जिनके आकार में चमक रही है। 725. अमूर्तिमान्: वह जिनका कोई निश्चित आकार नहीं है। 726. अनेकमूर्तये: अनेक आकारों वाले वह। 727. अव्यक्तः: जिसे आसानी से समझा नहीं जा सकता। 728. सतमूर्तिसः: सौ आकारों वाले वह। 729. सतननः: जिनका चेहरा सौ रूपों में है।
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एको नैकः सवः कः किं यत् तत्पदमनुत्तमम् । लोकबन्धुर्लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः ॥ ७८॥
730. Ekah: One Who is Unique and matchless in all respects. 731. Naikah: He Who is not One only. 732. Sah: He Who spreads knowledge. 733. Vah: The Dweller. 734. Kah: He Who shines. 735. Kim: He Whose praise is sung by His devotees, 736. Yat: That Which already exists. 737. Tat: He Who increases the kirti of His devotees. 738. Padam anuttamam: The Supreme Goal. 739. Loka-bandhuh: One to Whom everything is bound since He is their Support. 740. Loka-nathah: The Protector of the world. 741. Madhavah: The Consort of Lakshmi. 742. Bhakta-vatsalah: Affectionate towards the devotees
730. एकः: जो सभी दृष्टिकोणों में अनूप है। 731. नैकः: वह जो एक ही नहीं है। 732. सः: वह जो ज्ञान को प्रसारित करता है। 733. वः: निवासी। 734. कः: वह जो प्रकाशित होता है। 735. किम्: जिसकी प्रशंसा उसके भक्तों द्वारा की जाती है। 736. यत्: जो पहले से मौजूद है। 737. तत्: जो अपने भक्तों की प्रशंसा बढ़ाता है। 738. पदमनुत्तमम्: परम लक्ष्य। 739. लोकबन्धुः: वह जिसे सब कुछ बंधा हुआ है क्योंकि वह उनका समर्थन है। 740. लोकनाथः: जगत का पालक। 741. माधवः: लक्ष्मी का पति। 742. भक्तवत्सलः: भक्तों के प्रति स्नेही।
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सुवर्णवर्णो हेमाङ्गो वराङ्गश्चन्दनाङ्गदी । वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरचलश्चलः ॥ ७९॥
743. Suvarna-varnah: The golden-hued. 744. Hema’ngah: He of golden-hued limbs. 745. Vara’ngah: He Who displayed His Divine Form to Devaki in response to her prayers. 746. Candana’ngadi: He Who is adorned with delightful armlets. 747. Viraha: The Slayer of the strong demons. 748. Vishamah: He Who destroyed the effect of the poison that was consumed by Rudra during the churning of the Milk Ocean. 749. Sunyah: He Who is without any attributes. 750. Ghrtasih: He Who sprinkles the world with prosperity. 751. A-chalah: He Who is unshakable against His enemies. 752. Chalah: He Who moves.
743. सुवर्णवर्णः: स्वर्ण के रंग के। 744. हेमाङ्गः: सोने जैसी अंगों वाले। 745. वराङ्गः: वह जिन्होंने देवकी की प्रार्थनाओं का प्रतिसार करते हुए अपना दिव्य रूप प्रकट किया। 746. चन्दनाङ्गदि: वह जो आनंददायक बाजूबंदों से अलंकृत है। 747. विरह: शक्तिशाली राक्षसों का वधक। 748. विषमः: उन्होंने हलाहल विष का प्रभाव नष्ट किया था, जो समुद्र मंथन के दौरान रुद्र द्वारा पी लिया गया था। 749. सुन्यः: वह जिसकी कोई गुणधर्म नहीं है। 750. घृतसीः: वह जो प्रसन्नि देंगे और समृद्धि को बरसाएंगे। 751. अचलः: वह जिसे उसके शत्रुओं के खिलाफ हिला नहीं सकता है। 752. चलः: वह जो चलता है।
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अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक् । सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ॥ ८०॥
753. A-mani: He Who is not proud. 754. Mana-dah: He who honors others. 755. Manyah: The Object of honor. 756. Loka-svamI: The Master of the Universe. 757. Tri-loka-dhrt: He who supports the three worlds. 758. Su-medhah: He who has good intentions. 759. Medha-jah: He who was born as a result of a sacrifice. 760. Dhanyah: The Blessed. 761. Satya-medhah: He of true thoughts. 762. Dharadharah: He Who supports the Earth.
753. आमनि: जिसकी घमंड में कोई समान नहीं है। 754. मनदः: वह जो दूसरों का सम्मान करता है। 755. मन्यः: सम्मान का आदर्ष वस्त्रण करने योग्य व्यक्ति। 756. लोक-स्वामी: ब्रह्माण्ड के स्वामी। 757. त्रि-लोक-धृत्: वह जो तीनों लोकों का सहारा करता है। 758. सु-मेधः: वह जिनका उद्देश्य अच्छा है। 759. मेधा-जः: जिन्होंने यज्ञ के फलस्वरूप जन्म लिया था। 760. धन्यः: धन्यवादी। 761. सत्य-मेधः: सच्चे विचारों वाले। 762. धरधरः: जिन्होंने पृथ्वी का सहारा किया।
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तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः । प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकशृङ्गो गदाग्रजः ॥ ८१॥
763. Tejo-vrshah: He Who showers His splendor on His devotees in the form of His protection. 764. Dyuti-dharah: He Who is like a majesty. 765. Sarva-Sastra-bhrtam-varah: The Best among those warriors who are armed with all weapons. 766. Pragrahah: The Controller. 767. Nigrahah: He Who has firm control over all creation. 768. Vyagrah: He Who has no end. 769. naika-sr’ngah: He Who has many rays of effulgence radiating from Him. 770. gadagrajah: The elder brother of gada.
763. तेजोवृषः: वह जो अपने भक्तों पर अपने संरक्षण के रूप में अपने शौर्य की बूँदें बरसाते हैं। 764. द्युति-धरः: वह जो एक महान शक्ति की तरह है। 765. सर्व-शस्त्र-भृतां-वरः: वह योद्धाओं में से सब सशस्त्रों से युक्त सर्वश्रेष्ठ हैं। 766. प्रग्रहः: नियंत्रक। 767. निग्रहः: वह जो सम्पूर्ण सृजन के अधिपति हैं। 768. व्यग्रः: वह जिसका अंत नहीं है। 769. नैक-शृङ्गः: वह जिसके बहुत सारे प्रकाश की किरणें हैं। 770. गदा-ग्रजः: गदा के बड़े भाई।