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    स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत् । वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ॥ ५०॥

    466. Svapanah: He who lulls people into sleep. 467. Sva-vasah: He who is under His own control. 468. Vyapi: The Pervader. 469. Naikatma: He of diverse forms. 470. Naika-karma-krt: He who performs diverse acts. 471. Vatsarah: He who lives within all beings and in whom everything resides. 473. Vatsi: He who possesses lots of calves and children 474. Ratna-garbhah: He who is in possession of abundant wealth. 475. Dhanesvarah: The quick giver of wealth.

    466. स्वपनः: वह जो लोगों को नींद में लुबा लेता है। 467. स्ववासः: वह जो अपने ही अधीन है। 468. व्यापी: व्यापक। 469. नैकात्मा: वह जिसके अनेक रूप हैं। 470. नैककर्मकृत्: वह जो अनेक प्रकार के कर्म करता है। 471. वत्सरः: वह जो सभी प्राणियों में बसता है और जिसमें सब कुछ बसा है। 473. वत्सी: वह जिसके पास बहुत सारे बछड़े और बच्चे हैं। 474. रत्नगर्भः: वह जो बहुत अधिक धन के धारक है। 475. धनेश्वरः: धन का शीघ्र देने वाला।