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सहस्रार्चिः सप्तजिह्वः सप्तैधाः सप्तवाहनः । अमूर्तिरनघोऽचिन्त्यो भयकृद्भयनाशनः ॥ ८९॥
830. Sahasrarcih: The Thousand-rayed who illumines everything in this Universe. 831. Sapta-jihvah: The seven-tongued. 832. Saptaidhah: One Who is kindled in the form of fire by the seven kinds of offerings. 833. Sapta-vahanah: He Who has seven vehicles in the form of the seven Vedic mantra-s represented by the seven horses of the Sun: 834. A-murtih: He Who does not have a body that is affected by karma. 835. An-aghah: He Who is of blemishless character. 836. A-cintyah: He Who cannot be completely comprehended in our minds. 837. Bhya-krt: He Who causes fear. 838. Bhaya-nasanah: He Who destroys fear.
830. सहस्रार्चिः: वह हैं जिनके हजारों किरणे हैं जो इस ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करते हैं। 831. सप्त-जिह्वः: सात जीभों वाले। 832. सप्तैधः: वह जिन्होंने सात प्रकार की आहुतियों के रूप में आग के रूप में दीप्त किया जाता है, जो कि सात वेदिकाओं द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं। 833. सप्त-वाहनः: वह जिनके पास सूर्य के सात घोड़ों के रूप में सात प्रकार के यज्ञ मंत्र हैं। 834. अमूर्तिः: वह जिनका शरीर कर्म से प्रभावित नहीं होता है। 835. अनघः: वह जिनका चरित्र दोषमुक्त है। 836. अचिन्त्यः: वह जिनको हमारे मन से पूरी तरह समझा नहीं जा सकता है। 837. भयकृत्: वह जिनका दर दिलाते हैं। 838. भयनाशनः: वह जिनके द्वारा भय को नष्ट किया जाता है।