- 36
आशा तृष्णा निपट सतावे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥ ३६ ॥
Hopes and wishes always bother me. All sort of passions and lust torment my heart ever. ॥ 36 ॥
हे माता! आशा और तृष्णा मुझे निरन्तर सताती रहती हैं। मोह, अहंकार, काम, क्रोध, ईर्ष्या भी दुखी करते हैं। ॥ ३६ ॥
- 37
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥ ३७ ॥
Destroy my foes, O Queen; I remember you singlemindedly, O Bhavani! ॥ 37 ॥
हे भवानी! मैं एकचित होकर आपका स्मरण करता हूँ। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए। ॥ ३७ ॥
- 38
करो कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ॥ ३८ ॥
O, forgiving Mother! Shower me your blessings and make me feel happy by bestowing me with all sorts of wealth and powers. ॥ 38 ॥
हे दया बरसाने वाली अम्बे मां! मुझ पर कृपा दृष्टि कीजिए और ऋद्धि-सिद्धि आदि प्रदान कर मुझे निहाल कीजिए। ॥ ३८ ॥
- 39
जब लगि जियउं दया फल पाऊं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥ ३९ ॥
O, Mother! May I be the repository of your grace as long as I live, ever recounting the feats of your glory to all. ॥ 39 ॥
हे माता! जब तक मैं जीवित रहूँ सदा आपकी दया दृष्टि बनी रहे और आपकी यशगाथा (महिमा वर्णन) मैं सबको सुनाता रहूँ। ॥ ३९ ॥
- 40
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४० ॥
He whoever sings this Durga Chalisa shall ever enjoy all sorts of pleasures and shall attain the highest position in the end. ॥ 40 ॥
जो भी भक्त प्रेम व श्रद्धा से दुर्गा चालीसा का पाठ करेगा, सब सुखों को भोगता हुआ परमपद को प्राप्त होगा। ॥ ४० ॥