- 26
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥ २६ ॥
It is the symbol of your glory that is burning brightly at Shree Jwala ji. All men and women ever worship you, O Mother! ॥ 26 ॥
हे मां! श्री ज्वालाजी में भी आप ही की ज्योति जल रही है। नर-नारी सदा आपकी पुजा करते हैं। ॥ २६ ॥
- 27
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥ २७ ॥
He who sings your glory with devotion of love and sincerity remains beyond the reach of grief and poverty. ॥ 27 ॥
प्रेम, श्रद्धा व भक्ति सेजों व्यक्ति आपका गुणगान करता है, दुख व दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आते। ॥ २७ ॥
- 28
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८ ॥
He who meditates upon your form with concentration goes beyond the cycle of births and deaths. ॥ 28 ॥
जो प्राणी निष्ठापूर्वक आपका ध्यान करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से निश्चित ही मुक्त हो जाता है। ॥ २८ ॥
- 29
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥ २९ ॥
All the Yogis, Gods and Sages openly declare that without your favour one can’t establish communication with God. ॥ 29 ॥
योगी, साधु, देवता और मुनिजन पुकार-पुकारकर कहते हैं की आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है। ॥ २९ ॥
- 30
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥ ३० ॥
Shankaracharya had performed once a special penance caled Acharaj and by the virtue of which he had subdued his anger and desire. ॥ 30 ॥
शंकराचार्यजी ने आचारज नामक तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सबको जीत लिया। ॥ ३० ॥