- 21
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥ २१ ॥
You slayed the demons like Shumbhu and Nishumbhu and masacred the thousand forms of the dreaded demon Raktabeeja. ॥ 21 ॥
हे मां! आपने शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षसों का संहार किया व रक्तबीज (शुम्भ-निशुम्भ की सेना का एक राक्षस जिसे यह वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से सैंकड़ों राक्षस पैदा हो जाएंगे) तथा शंख राक्षस का भी वध किया। ॥ २१ ॥
- 22
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥ २२ ॥
When the earth was severtly distressed bearing the load of the sins of the arrogant Mahishasur. ॥ 22 ॥
अति अभिमानी दैत्यराज महिषासुर के पापों के भार से जब धरती व्याकुल हो उठी। ॥ २२ ॥
- 23
रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥ २३ ॥
You assumed the dreadful form of Goddess Kali and massacred him along with his army. ॥ २३ ॥
तब काली का विकराल रूप धारण कर आपने उस पापी का सेना सहित सर्वनाश कर दिया। ॥ २३ ॥
- 24
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४ ॥
Thus whenever the noble saints were distressed, it is you O Mother, who came to their rescue. ॥ 24 ॥
हे माता! संतजनों पर जब-जब विपदाएं आईं तब-तब आपने अपने भक्तों की सहायता की है। ॥ २४ ॥
- 25
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥ २५ ॥
All the realms including the Amarpuri (divine realm) remain sorrowless and happy by your grace, O Goddess! ॥ 25 ॥
हे माता! जब तक ये अमरपुरी और सब लोक विधमान हैं तब आपकी महिमा से सब शोकरहित रहेंगे। ॥ २५ ॥