- 16
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥ १६ ॥
You helped Sugriva by introducing Him to Lord Rama and regaining his crown. Therefore, You gave Him the Kingship (the dignity of being called a king). ॥ 16 ॥
आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने। ॥ १६ ॥
- 17
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना । लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥ १७ ॥
Likewise, complying with Your preachings, even Vibhishana became the King of Lanka. ॥ 17 ॥
आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है। ॥ १७ ॥
- 18
जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥
You swallowed the sun, located thousands of miles away, mistaking it to be a sweet, red fruit! ॥ 18 ॥
जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया। ॥ १८ ॥
- 19
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ १९ ॥
Keeping the ring in Your mouth, which was given to You by Lord Rama, you crossed over the Ocean, to no astonishment, whatsoever. ॥ 19 ॥
आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। ॥ १९ ॥
- 20
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥ २० ॥
All difficult tasks of this world become easy, with Your grace. ॥ 20 ॥
संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है। ॥ २० ॥