1. 6

    कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि। चिदानन्द सन्दोह मोहापहारि। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि ॥ ६ ॥

    Beyond time, timeless, welfare incarnate, the creation's end, Enemy of Tripura, who gives pleasure and happiness to the worthy, Giver of eternal bliss, who removes worldly entanglements, Kamadeva's destroyer, bless me, you churn my heart. ॥ 6 ॥

    कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत(प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों। ॥ ६ ॥

  2. 7

    न यावद् उमानाथपादारविन्दम्। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्। न तावत्सुखम् शान्ति सन्तापनाशम्। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७ ॥

    Husband of Parvati, till we worship your lotus feet, We can never attain peace and joy in this world or in heaven, Or mitigate or lessen our suffering, Lord who resides in the heart of all, be pleased with me and my offering. ॥ 7 ॥

    हे पार्वती के पति, जबतक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये। ॥ ७ ॥

  3. 8

    न जानामि योगम् जपम् नैव पूजाम्। नतोऽहम् सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्। जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानम्। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८ ॥

    Oh Shambho, I know not yoga, or penance or worship or prayer, But I always honor you, Oh my Lord, always be my savior, Suffering the cycle of death, birth and old age, I burn, Lord, protect this pained one from grief, I offer you my devotion. ॥ 8 ॥

    मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म [मृत्यु] दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। ॥ ८ ॥

  4. 9

    रुद्राष्टकमिदम् प्रोक्तम् विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषाम् शम्भुः प्रसीदति ॥ ९ ॥

    This Ashtak of Lord Rudra is for the praise of that Shankar ji. Sri Shankar is pleased with the people who read it in the form of love. ॥ 9 ॥

    भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं। ॥ ९ ॥