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त्वदीयसत्ताधरमेकदन्तं गुणेश्वरं यं गुणबोधितारम् । भजन्तमत्यन्तमजं त्रिसंस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥६॥
[O Lord!] Your devotee who has attained power is Ekadanta (the most generous one). He is the master of the three Gunas and imparts knowledge of those Gunas. He is engaged in the intense worship of the unborn Supreme Lord. We take refuge in that Ekadanta Ganesha who is present in the three worlds, three Gunas, three states and three Gods.
[ हे भगवन् ! ] आपकी ही सत्ता धारण करने वाले भक्त एकदन्त (अपूर्व दानी) हैं, वे तीनों गुणों के स्वामी होते हुए उन गुणों का बोध कराने वाले हैं । वे आप अजन्मा परमेश्वर के अत्यन्त भजन में संलग्न हैं। तीनों लोकों, तीनों गुणों, तीनों अवस्थाओं एवं तीनों देवों में विद्यमान उन एकदन्त गणेश की हम शरण लेते हैं ।
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ततस्त्वया प्रेरितनादकेन सुषुप्तिसंज्ञं रचितं जगद् वै। समानरूपं ह्युभयत्रसंस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥७॥
[O Lord!] Then the sound inspired by you has created the world called deep sleep. We take refuge in you Ekadanta who is equally present in both the states.
[ हे प्रभो !] फिर आपके द्वारा प्रेरित नाद ने सुषुप्ति-नामक जगत् की सृष्टि की है। दोनों अवस्थाओं में समानरूप से विराजमान आप एकदन्त की हम शरण लेते हैं ।
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तदेव विश्वं कृपया प्रभूतं द्विभावमादौ तमसा विभान्तम् । अनेकरूपं च तथैकभूतं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥८॥
That world which is known as deep sleep, which was covered in darkness in the beginning, appeared in two forms by your grace. We take refuge in Lord Ekadanta who is one in spite of having many forms.
वह सुषुप्ति-संज्ञक जगत् ही, जो आदिकाल में तम से आच्छन्न था, आपकी कृपा से दो रूपों में प्रकट हुआ। जो अनेकरूप होते हुए भी एकरूप हैं, उन भगवान् एकदन्त की हम शरण लेते हैं ।
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ततस्त्वया प्रेरितकेन सृष्टं बभूव सूक्ष्मं जगदेकसंस्थम् । सुसात्त्विकं स्वप्नमनन्तमाद्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥९॥
Thereafter, the subtle world was created from the point inspired by you, which exists only in you. We take refuge in Lord Ekadanta who is the most Sattvik, dreamlike, infinite and the root cause of everything.
तदनन्तर आपके द्वारा प्रेरित बिन्दु से सूक्ष्म जगत् की सृष्टि हुई, जो एकमात्र आप में ही स्थित है। जो परम सात्त्विक, स्वप्नमय, अनन्त एवं सबके आदिकारण हैं, उन भगवान् एकदन्त की हम शरण लेते हैं ।
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तदेव स्वप्नं तपसा गणेश सुसिद्धरूपं विविधं बभूव । सदैकरूपं कृपया च तेऽद्य तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१०॥
O Ganesha! That subtle world is a dream, which has manifested in various forms by your determined penance. It is always in one form by your grace. Today we take refuge in the same Lord Ekadanta.
हे गणेश ! वह सूक्ष्म जगत् ही स्वप्न है, जो आपके संकल्पमय तप से सुसिद्धरूप हो विविध भावों में प्रकट हुआ । वह आपकी कृपा से सदा एकरूप में स्थित है। आज हम उन्हीं भगवान् एकदन्त की शरण लेते हैं ।