1. 11

    त्वदाज्ञया तेन त्वया हृदिस्थं तथा सुसृष्टं जगदंशरूपम् । विभिन्नजाग्रन्मयमप्रमेयं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ॥११॥

    Through that dream which was activated by your order, you have created the wonderful creation of the world which is a part of the world present in your heart. It is represented by various things of the waking state. We take refuge in that immeasurably powerful Lord Ekadanta.

    आपकी आज्ञा से क्रियाशील हुए उस स्वप्न के द्वारा आपने ही अपने हृदय में विराजमान जगत् के अंशरूप जगत् की उत्तम सृष्टि की है। वह विभिन्न जाग्रत्कालीन वस्तुओंसे उपलक्षित है। हम अप्रमेय शक्तिशाली उन भगवान् एकदन्त की शरण लेते हैं ।

  2. 12

    तदेव जाग्रद्रजसा विभातं विलोकितं त्वत्कृपया स्मृतेन । बभूव भिन्नं च सदैकरूपं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१२॥

    The same awakened world is manifested from the mode of passion and is visible by your grace and awareness. We take refuge in Lord Ekadanta who is always one but has appeared in various forms.

    वही जाग्रत् जगत् रजोगुण से व्यक्त होकर आपकी कृपा एवं स्मृति से प्रत्यक्ष दिखायी देता है। जो सदा एकरूप होते हुए भी विभिन्न रूपों में प्रकट हुए हैं, उन भगवान् एकदन्त की हम शरण लेते हैं ।

  3. 13

    सदेव सृष्ट्वा प्रकृतिस्वभावा- त्तदन्तरे त्वं च विभासि नित्यम् । धिय: प्रदाता गणनाथ एक: तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ॥१३॥

    Having created the world of goodness from the nature of nature, you are always present in it. Only Gannath is the giver of wisdom. We take refuge in the same Lord Ekadanta.

    प्रकृति के स्वभाव से सद्रूप जगत् की ही सृष्टि करके आप उसके भीतर नित्य विराज रहे हैं। एकमात्र गणनाथ ही बुद्धि के दाता हैं। हम उन्हीं भगवान् एकदन्त की शरण लेते हैं ।

  4. 14

    त्वदाज्ञया भान्ति ग्रहाश्च सर्वे प्रकाशरूपाणि विभान्ति खे वै । भ्रमन्ति नित्यं स्वविहारकार्या: तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१४॥

    [O Lord!] It is by your order that all the planets and stars in the sky are shining. They move around performing their daily tasks by your order. We take refuge in you, Lord Ekadanta.

    [ हे भगवन्! ] आपकी ही आज्ञा से आकाश में समस्त ग्रह तथा प्रकाशरूप तारे विभासित हो रहे हैं। वे आपके आदेश से ही नित्य अपने विहार-कार्य का सम्पादन करते हुए भ्रमण करते हैं। उन्हीं आप भगवान् एकदन्त की हम शरण लेते हैं ।

  5. 15

    त्वदाज्ञया सृष्टिकरो विधाता त्वदाज्ञया पालक एकविष्णुः । त्वदाज्ञया संहरको हरोऽपि तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१५ ॥

    [O Lord!] By your order the Creator creates the universe, by your order the unique Vishnu protects the universe and by your order Mahadevji also destroys everything. We seek refuge in Him, Lord Ekadanta.

    [ हे प्रभो ! ] आपकी आज्ञा से विधाता सृष्टिरचना करते हैं, आपकी आज्ञा से अद्वितीय विष्णु सृष्टि का पालन करते हैं और महादेवजी भी आपकी आज्ञा से ही सबका संहार करते हैं। हम उन्हीं आप भगवान् एकदन्त की शरण लेते हैं ।