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देवर्षय ऊचुः सदात्मरूपं सकलादिभूत- ममायिनं सोऽहमचिन्त्यबोधम् । अनादिमध्यान्तविहीनमेकं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१॥
Devarshigan said - who is the embodiment of the eternal soul, the original cause of everything, free from illusion and is full of the inconceivable knowledge of 'Soyhamsmi' (I am the Supreme Soul); We take refuge in the unique one-toothed Lord Ganesha who has no beginning, middle and end.
देवर्षिगण बोले- जो सदात्मस्वरूप, सब के आदिकारण, मायारहित तथा 'सोऽहमस्मि' (वह परमात्मा मैं हूँ) - इस अचिन्त्य बोध से सम्पन्न हैं; जिनका आदि, मध्य और अन्त नहीं है, उन एक- अद्वितीय एकदन्तधारी भगवान् गणेश की हम शरण लेते हैं ।
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अनन्तचिद्रूपमयं गणेश- मभेदभेदादिविहीनमाद्यम् हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥२॥
We take refuge in that Ekadanta Ganesha who is infinite consciousness, who is beyond non-difference and distinction, who is the original man and who holds the light of knowledge in his heart; he who is situated in our intellect.
जो अनन्त चिन्मय हैं, अभेद और भेद आदि से परे हैं, आदिपुरुष हैं और हृदय में ज्ञानमय प्रकाश धारण करते हैं, अपनी बुद्धि में स्थित हुए उन एकदन्त गणेश की हम शरण लेते हैं ।
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समाधिसंस्थं हृदि योगिनां यं प्रकाशरूपेण विभातमेतम् । सदा निरालम्बसमाधिगम्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥३॥
We take refuge in Lord Ganesha, the one-tusked one, who always remains in meditation, who shines like light in the hearts of yogis and who can always be experienced through independent meditation.
जो सदा समाधिस्थ रहते हैं, योगियों के हृदय में प्रकाशरूप से उद्भासित होते हैं और सदा निरालम्ब समाधि के द्वारा अनुभव में आने वाले हैं, उन एकदन्तधारी भगवान् गणेश की हम शरण लेते हैं ।
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स्वबिम्बभावेन विलासयुक्तां प्रत्यक्षमायां विविधस्वरूपाम् । स्ववीर्यकं तत्र ददाति यो वै तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥४॥
We take refuge in Lord Ganesha, who has one tusk and who transfuses His semen (strength) into the Maya which is luxurious in its own image, has many forms and is directly visible.
जो स्वीय बिम्बभाव से विलासशीला, विविधस्वरूपा, प्रत्यक्ष दृश्यरूपा माया है, उसमें जो अपने वीर्य (बल) का आधान करते हैं, उन एकदन्तधारी भगवान् गणेश की हम शरण लेते हैं ।
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त्वदीयवीर्येण समर्थभूत- स्वमायया संरचितं च विश्वम् । तुरीयकं ह्यात्मप्रतीतिसंज्ञं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥५॥
[O Lord!] This entire universe has been created by your semen, your power of illusion, which has become powerful with your strength and splendor. You are beyond the three states of wakefulness, dream and deep sleep, you are the embodiment of self-realization, the Turiya Parmatma. We take refuge in such one-tusked Lord Ganesha.
[हे प्रभो ! ] आपके ही वीर्य से-बल-वैभव से सामर्थ्यशालिनी हुई जो आपकी मायाशक्ति है, उसी के द्वारा इस सम्पूर्ण विश्व की संरचना हुई है। आप जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति-इन तीनों अवस्थाओं से परे, आत्मबोधस्वरूप, तुरीय परमात्मा हैं। ऐसे एकदन्तधारी भगवान् गणेश की हम शरण लेते हैं।