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    मन्त्रः ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ ५ ॥

    ( this is a Thanthric chant which consists of sounds and words which are meant to please the Goddess.) “Jwalaya” means “Burn” , “Prajwala” Means “set fire." ॥ 5 ॥

    ऊपर लिखे मन्त्र में आये बीजों का अर्थ जानना न सम्भव है, न आवश्यक और न वांछनीय। केवल जप ही पर्याप्त है। ॥ ५ ॥