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पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन् समूह। तेजो यत् ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुषः सोऽहमस्मि ॥ १६॥
O Fosterer, O sole Seer, O Ordainer, O illumining Sun, O power of the Father of creatures, marshal thy rays, draw together thy light; the Lustre which is thy most blessed form of all, that in Thee I behold. The Purusha there and there, He am I.
हे पोषक, हे एकमात्र द्रष्टा, हे विधाता एवं नियन्ता, हे प्रकाशदाता सूर्य, हे प्रजापति की (प्राणियों एवं प्रजाओं के पिता की) शक्ति! अपनी किरणों को व्यूहबद्ध एवं व्यवस्थित कर, अपने प्रकाश को एकत्र एवं पुञ्जीभूत कर ले जो तेज तेरा सबसे अधिक कल्याणकारी रूप है, तेरा वही रूप मैं देखता हूं। वहां, वहां जो पुरुष है वही हूँ मैं।
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वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतं शरीरम्। ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर ॥१७॥
The Breath of things is an immortal Life, but of this body ashes are the end. OM! OWill, remember, that which was done remember! O Will, remember, that which was done remember.
वस्तुओं का प्राण, वायु, अमर जीवनतत्त्व है, परन्तु इस का अन्त है भस्म। ओ३म। हे दिव्य संकल्पशक्ति! स्मरण कर, जो किया था उसे स्मरण कर! हे दिव्य संकल्पशक्ति, स्मरण कर, किये हुए कर्म का स्मरण कर।
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अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम ॥१८॥
O god Agni, knowing all things that are manifested, lead us by the good path to the felicity; remove from us the devious attraction of sin. To thee completest speech of submission we would dispose.
सब व्यक्त वस्तुओं के जानने वाले हे अग्निदेव! हमे सुपथ से, उत्तम मार्ग से आनन्द की ओर ले चल; पाप का कुटिलतापूर्ण आकर्षण हमसे हटा दे, दूर कर दे। तेरे प्रति अन्तर्नमन (समर्पण) की सर्वाङ्गपूर्ण वाणी (स्तोत्र) हम निवेदित करें।