- 1
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ॥ १ ॥
In this cosmic movement, in this extremely dynamic macrocosm, whatever is there in this visible, moving, individual world – all of it is for the abode of God. You should enjoy it by renouncing all this; Do not cast a greedy glance at anyone else's wealth.
इस वैश्व गति में, इस अत्यन्त गतिशील समष्टि-जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबके त्याग द्वारा तुझे इसका उपभोग करना चाहिये; किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि मत डाल।
- 2
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥२॥
A man should aspire to live a hundred years only while doing work in this world. O human! There is only this type of law for you, there is no other type other than this, thus, by desiring to live only while doing work, a person does not get coated with karma.
इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिये। हे मानव! तेरे लिए इस प्रकार का ही विधान है, इससे भिन्न किसी और प्रकार का नहीं है, इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता।
- 3
असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥३॥
Those worlds are devoid of sun and covered in thick darkness. Those people who destroy their soul reach those worlds after leaving here.
वे लोक सूर्य से रहित हैं और गाढ़े अन्धकार से आच्छादित हैं। उन लोकों को वे सभी लोग यहां से प्रयाण करने पर पहुंचते हैं जो कोई भी अपनी आत्मा का हनन करते हैं।
- 4
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्। तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत् तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ॥४॥
That immovable and immovable only Brahma is faster than the mind and is extremely fast. The gods are unable to reach that one, because he always reaches ahead of them. Even while standing still, he runs and overtakes others. In that element, the lord of life force establishes air and water currents.
वह अचल, अचलायमान एकमेव ब्रह्म मन से वेगवत्तर, अत्यधिक वेगवाला है। उस एकमेव तक देवता नहीं पहुँच पाते, क्योंकि वह सदैव उनसे आगे-आगे पहुँच जाता है पहुँचा होता है। वह ठहरा हुआ भी दौड़ते हुए दूसरों को पार कर आगे निकल जाता है। उस तत् में जीवन-शक्ति का स्वामी वायु जलधाराओं को स्थापित करता है।
- 5
तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके। तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥ ५॥
That moves and That moves not; That is far and the same is near; That is within all this and That also is outside all this.
वह गति करता है और गति नहीं भी करता; वह दूर है और पास भी है; इस सबके भीतर है और इस सबके बाहर भी है।