1. 11

    विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह। अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥११॥

    He who knows That as both in one, the Knowledge and the Ignorance, by the Ignorance crosses beyond death and by the Knowledge enjoys Immortality.

    जो तत् को इस रूप में जानता है कि वह एक साथ विद्या और अविद्या दोनों है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है।

  2. 12

    अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽसम्भूतिमुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ सम्भूत्यां रताः ॥ ॥

    Into a blind darkness they enter who follow after the Non - Birth, they as if into a greater darkness who devote themselves to the Birth alone.

    जो अजन्म, जन्माभाव की अवस्था का अनुसरण करते हैं वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। और जो केवल जन्म, प्रकृति के अन्दर जन्म में ही रत रहते हैं वे मानो उससे भी अधिक घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं।

  3. 13

    अन्यदेवाहुः सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्‌। इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे ॥१३॥

    Other, verily, it is said, is that which comes by the Birth, other that which comes by the Non - Birth; this is the lore we have received from the wise who revealed That to our understanding.

    जन्म से जो प्राप्त होता है वह अन्य ही है, ऐसा ज्ञानी कहते हैं; अजन्म से जो प्राप्त होता है वह और ही है, ऐसा ज्ञानी कहते हैं; यह श्रुतिज्ञान हमने ज्ञानियों से प्राप्त किया है जिन्होंने हमारी बुद्धि के समक्ष तत् को प्रकाशित किया।

  4. 14

    सम्भूतिञ्च विनाशञ्च यस्तद्वेदोभयं सह। विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्याऽमृतमश्नुते ॥१४॥

    He who knows That as both in one, the Birth and the dissolution of Birth, by the dissolution crosses beyond death and by the Birth enjoys Immortality.

    जो तत् को इस रूप में जानता है कि वह एक साथ जन्म और जन्म का उच्छेद या अन्त दोनों है, वह जन्म के उच्छेद या अन्त से मृत्यु को पार कर जन्म से अमरता का आस्वादन करता है।

  5. 15

    हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌। तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥१५॥

    The face of Truth is covered with a brilliant golden lid; that do thou remove, O Fosterer, for the law of the Truth, for sight.

    सत्य का मुख चमकीले सुनहरे ढक्कन से ढका है; हे पोषक सूर्यदेव! सत्य के विधान की उपलब्धि के लिए, साक्षात् दर्शन के लिए तू वह ढक्कन अवश्य हटा दे।