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यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ १५ ॥
Those who read Sapthasathi without this prayer of Kunjika , Would not reach the forest of perfection as it would be like a wail there. ॥ 15 ॥
हे देवी! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है। ॥ १५ ॥