1. 17

    पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् । तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

    Whoever constantly worships Your lotus feet, You who are the abode of compassion and who are auspiciousness itself, he will certainly be endowed with all prosperity. O Goddess Parvati, I who always meditate on Your lotus feet looking upon them as my ultimate refuge will certainly get it. O Goddess Lakshmi, who bestow everything on devotees, You who have charming locks of hair, O Daughter of the Mountain, hail unto You, hail unto You. ॥ 17 ॥

    हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे! हे कमल वासिनी कमले! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा! हे शिवे! आपका चरण ही परम पद (मोक्ष) है ─ ऐसी भावना रखनेवाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायेगा अर्थात् सब कुछ प्राप्त हो जायेगा। हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो ॥ १७ ॥