1. 16

    विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते । सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते । जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

    You who by Your splendour defeat even the sun with thousands of rays, You who are prostrated to by the sun god with his thousands of rays, You who were praised by the son of Tarakasura after that asura was killed by Your son Lord Subrahmanya in the battle between the gods and Tarakasura when the gods were defeated, You who were pleased with the chanting of mantras by the royal sage Suratha and the Vaisya named Samadhi who was himself like samadhi and who prayed for nirvikalpa samadhi, You who have charming locks of hair, O Daughter of the Mountain, hail unto You, hail unto You. ॥ 16 ॥

    हजारों हस्त नक्षत्र को जीतनेवाले, सहस्त्र किरणोंवाले भगवान् सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय; देवताओं के उद्धार हेतु युद्ध करनेवाले तारकासुर संग्राम करनेवाले तथा संसारसागर से पार करनेवाले शिवजी के पुत्र कार्तिकेय से नमस्कार की जानेवाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियों में सम्यक् जपे जानेवाले मन्त्र में प्रेम रखनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो ॥ १६ ॥

  2. 17

    पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् । तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

    Whoever constantly worships Your lotus feet, You who are the abode of compassion and who are auspiciousness itself, he will certainly be endowed with all prosperity. O Goddess Parvati, I who always meditate on Your lotus feet looking upon them as my ultimate refuge will certainly get it. O Goddess Lakshmi, who bestow everything on devotees, You who have charming locks of hair, O Daughter of the Mountain, hail unto You, hail unto You. ॥ 17 ॥

    हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे! हे कमल वासिनी कमले! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा! हे शिवे! आपका चरण ही परम पद (मोक्ष) है ─ ऐसी भावना रखनेवाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायेगा अर्थात् सब कुछ प्राप्त हो जायेगा। हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो ॥ १७ ॥

  3. 18

    कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनुसिञ्चिनुतेगुणरङ्गभुवं भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम् । तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

    Whoever sprinkles the sacred precincts of Your abode with water from a golden pot will attain the position of Indra by Your grace. O consort of Lord Siva, I take refuge at Your holy feet. Deign to bless me with all prosperity, You who have charming locks of hair, O Daughter of the Mountain, hail unto You, hail unto You. ॥ 18 ॥

    स्वर्ण के समान चमकते घड़ों के जल से जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता है, वह इन्द्राणी के समान विशाल वक्ष:स्थलवाली सुन्दरियों का सान्निध्य-सुख अवश्य ही प्राप्त करता है। हे सरस्वति! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊँ; मुझे कल्याणकारक मार्ग प्रदान करो। हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो ॥ १८ ॥

  4. 19

    तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते । मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

    Whoever repeatedly meditates on Your divine face adorned by the crescent moon, will he ever be rejected by beautiful women like those in Indra’s abode? O most valued treasure of Siva, why do You not fulfill my wishes, You who have charming locks of hair, O Daughter of the Mountain, hail unto You, hail unto You. ॥ 19 ॥

    स्वच्छ चन्द्रमा के सदृश सुशोभित होनेवाले आपके मुखचन्द्र निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता है, क्या उसे देवराज इन्द्र की नगरी में रहनेवाली चन्द्रमुखी सुन्दरियाँ सुख से वंचित रख सकती हैं! भगवान् शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझनेवाली [हे भगवति] मेरा तो यह विश्वास है कि आपकी कृपा से क्या-क्या सिद्ध नहीं हो जाता। हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो जय हो ॥ १९ ॥

  5. 20

    अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे अयि जगतो जननीति यथाऽसि मयाऽसि तथाऽनुमतासि रमे। यदुचितमत्र भवत्पुरगं कुरु शाम्भवि देवि दयां कुरु मे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

    O Goddess Uma, deign to bestow on me also Your compassion, You who are always inclined to shower compassion on the weak, O Goddess Rama, may You be hailed as the Mother of the universe. You are my mother also. I too am Your son. You may reject my prayer if it is not proper. Deign to remove my sorrow. ॥ 20 ॥

    हे उमे! आप सदा दीन-दु:खियों पर दया का भाव रखती हैं, अतः आप मुझ पर कृपालु बनी रहें। हे महालक्ष्मी! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ। हे शिवे! यदि आपको उचित प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें। हे देवि! मुझ पर दया करो। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनीपार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ २० ॥