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देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् । नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १ ॥
Salutations to Lord Kalabhairava, the supreme lord of Kashi, whose lotus feet are revered by Lord Indra, king of the devas; who has a snake as his sacrificial thread, a moon on his head and is very compassionate; who is praised by Narada, sage of the gods, and other yogis; who is a Digambara, wearing the sky as his dress, symbolizing his free being. ॥ 1 ॥
देवराज इंद्र जिनके पवित्र चरणों की सदैव सेवा करते है, जिन्होंने चंद्रमा को अपने शिरोभूषण के रूप में धारण किया है, जिन्होंने सर्पो का यज्ञोपवीत अपने शरीर पर धारण किया है, नारद सहित बड़े बड़े योगीवृन्द जिनको वंदन करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ. ॥ १ ॥
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भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् । कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २ ॥
Salutations to Lord Kalabhairava, the supreme lord of Kashi, who has the brilliance of a million suns, who saves devotees from the cycle of rebirths, and who is supreme; who has a blue throat, who grants us our desires, and who has three eyes; who is death unto death itself and whose eyes look like a lotus; whose trident supports the world and who is immortal. ॥ 2 ॥
जो करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्वी है,संसार रूपी समुद्र को तारने में जो सहायक हैं, जिनका कंठ नीला है, जिनके तीन लोचन है, और जो सभी ईप्सित अपने भक्तों को प्रदान करते है, जो काल के भी काल (महाकाल) है, जिनके नयन कमल की तरह सुंदर है, तथा त्रिशूल और रुद्राक्ष को जिन्होंने धारण किया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ. ॥ २ ॥
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शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् । भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३ ॥
Salutations to Lord Kalabhairava, the supreme lord of Kashi, who holds the trident, mattock, noose, and club in his hands; whose body is dark, who is the primordial Lord, who is immortal, and free from the diseases of the world; who is immensely mighty and who loves the wonderful tandava dance. ॥ 3 ॥
जिनकी कांति श्याम रूपी है, तथा जिन्होंने शूल, टंक, पाश, दंड आदि को जिन्होंने धारण किया है, जो आदिदेव, अविनाशी तथा आदिकारण है, जो महापराक्रमी है तथा अद्भुत तांडव नृत्य करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ. ॥ ३ ॥
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भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् । विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ४ ॥
Salutations to Lord Kalabhairava, the supreme lord of Kashi, the one who bestows both desires and salvation, who has a pleasing appearance; who is loving to his devotees, who is stable as the god of all the worlds; who wears a golden belt around his waist with bells that make a melodious sound when he moves. ॥ 4 ॥
जो भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करते है, जिनका स्वरूप प्रशस्त तथा सुंदर है, जो भक्तों को प्रिय है, चारों लोकों में स्थिर है, जिनकी कमर पे करधनी रुनझुन करती है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ. ॥ ४ ॥
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धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् । स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५ ॥
Salutations to Lord Kalabhairava, the supreme lord of Kashi, who ensures that dharma (righteousness) prevails, who destroys the path of adharma (unrighteousness); who saves us from the bonds of karma, thereby freeing our soul; and who has golden-hued snakes entwined around his body. ॥ 5 ॥
जो धर्म मार्ग के पालक तथा अधर्ममार्ग के नाशक है, जो कर्मपाश का नाश करने वाले तथा कल्याणप्रद दायक है, जिन्होंने स्वर्णरूपी शेषनाग का पाश धारण किया है, जिस कारण सारा अंग मंडित हो गया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ. ॥ ५ ॥