1. 6

    स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाहृतं गाङ्गतोयं पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खण्डबिल्वीदलानि । नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गन्धपुष्पे त्वदर्थं क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।६।।

    I did not bring Ganga water to perform your Abhishek after taking a bath in the morning, neither did I bring Bilva leaves from the forest for your worship, nor did I bring a garland of lotuses blooming in the pond and offer fragrant flowers to you. So, O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my sin! Forgive me.

    प्रातःकाल स्नान करके आपका अभिषेक करने के लिये मैं गंगाजल लेकर प्रस्तुत नहीं हुआ, न कभी आपकी पूजा के लिये वन से बिल्वपत्र ही लाया और न आपके लिये तालाब में खिले हुए कमलों की माला तथा गन्ध-पुष्प ही लाकर अर्पण किये । अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो ।

  2. 7

    दुग्धैर्मध्वाज्ययुक्तैर्दधिसितसहितैः स्नापितं नैव लिङ्ग नो लिप्तं चन्दनाद्यैः कनकविरचितैः पूजितं न प्रसूनैः। धूपैः कर्पूरदीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारैः क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।७।।

    I did not bathe your Linga with honey, ghee, curd and milk with sugar (panchamrit), did not anoint it with sandalwood etc., did not worship it with dhatura flowers, incense, lamp, camphor and offerings made of various juices. Therefore, O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my sins! Lord, forgive me.

    मधु, घृत, दधि और शर्करायुक्त दूध (पंचामृत) से मैंने आपके लिंग को स्नान नहीं कराया, चन्दन आदि से अनुलेपन नहीं किया, धतूरे के फूल, धूप, दीप, कपूर तथा नाना रसों से युक्त नैवेद्यों द्वारा पूजन भी नहीं किया। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! प्रभु क्षमा करो ।

  3. 8

    ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचुरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हुतवहवदने नार्पितं बीजमन्त्रैः। नो तप्तं गाङ्गतीरे व्रतजपनियमै रुद्रजाप्यैर्न वेदैः क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।८।।

    I did not give abundant wealth to Brahmins by remembering you named Shiva in my mind, nor did I offer oblations in the fire with your one lakh Beej Mantras, nor did I do any sadhna on the banks of Ganga by following the rules of fasting and chanting, Rudrajaap and Vedic method. So O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my sins! Forgive me.

    मैंने चित्त में शिव नामक आपका स्मरण करके ब्राह्मणों को प्रचुर धन नहीं दिया, न आपके एक लक्ष बीजमन्त्रों द्वारा अग्नि में आहुतियाँ दीं और न व्रत एवं जप के नियम से तथा रुद्रजाप और वेदविधि से गंगातट पर कोई साधना ही की । अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो।

  4. 9

    स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुण्डले सूक्ष्ममार्गे शान्ते स्वान्ते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपे पराख्ये। लिङ्गज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शङ्करं न स्मरामि क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।९।।

    After reaching the lotus with thousands of subtle paths, the life group gets absorbed in Pranavana and where the words and meaning of the Vedas get absorbed in the peaceful supreme principle in the form of light, I do not remember you, the all-embracing welfare, while being situated in that lotus. Therefore O Shiva! Hey Shiva! Hey Shankar! Hey Mahadev! Hey Shambho! Now forgive my crimes! Excuse me.

    जिस सूक्ष्ममार्गप्राप्य सहस्त्रदल कमल में पहुँचकर प्राणसमूह प्रणवनाद में लीन हो जाते हैं और जहाँ जाकर वेद के वाक्यार्थ तथा तात्पर्यभूत पूर्णतया आविर्भूत ज्योतिरूप शान्त परम तत्त्व में लीन हो जाता है, उस कमल में स्थित होकर मैं सर्वान्तर्यामी कल्याणकारी आपका स्मरण नहीं करता हूँ । अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो ।

  5. 10

    नग्नो निःसङ्गशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहान्धकारो नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित्। उन्मन्यावस्थया त्वां विगतकलिमलं शंकरं न स्मरामि क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।१०।।

    Naked, detached, pure and beyond the three gunas, destroying the darkness of delusion and fixing my gaze on the tip of my nose, I have never seen you after knowing your qualities, nor do I remember you in a state of madness, who are free from sins. Therefore, O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my sins! Forgive me.

    नग्न, निःसंग, शुद्ध और त्रिगुणातीत होकर, मोहान्धकार का ध्वंस कर तथा नासिकाग्र में दृष्टि स्थिर कर मैंने (आप) शंकर के गुणों को जानकर कभी आपका दर्शन नहीं किया और न उन्मनी-अवस्था से कलिमल रहित आप कल्याणस्वरूप का स्मरण ही करता हूँ । अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो ।