1. 11

    चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गङ्गाधरे शंकरे सर्वैर्भूषितकण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे। दन्तित्वक्कृतसुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे हरे मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमखिलामन्यैस्तु किं कर्मभिः।।११।।

    Whose forehead is illuminated by the phases of the moon, who destroys the pride of the womb, who is the bearer of the Ganges, who is auspicious, whose neck and ears are adorned with snakes, whose eyes emanate fire, whose robe is made of elephant skin and who is the essence of the three worlds, devote your entire mind to that Shiva for salvation; what is the use of other deeds?

    चन्द्रकला से जिनका ललाट-प्रदेश भासित हो रहा है, जो कन्दर्पदर्पहारी हैं, गंगाधर हैं, कल्याणस्वरूप हैं, सर्पों से जिनके कण्ठ और कर्ण भूषित हैं, नेत्रों से अग्नि प्रकट हो रहा है, हस्तिचर्म की जिनकी कन्था है तथा जो त्रिलोकी के सार हैं, उन शिव में मोक्ष के लिये अपनी सम्पूर्ण चित्तवृत्तियों को लगा दे; और कर्मों से क्या प्रयोजन है ?

  2. 12

    किं वानेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन राज्येन किं किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम्। ज्ञात्वैतत्क्षणभङ्गुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज भज श्रीपार्वतीवल्लभम्।।१२।।

    What about getting this wealth, horses, elephants and kingdom etc.? What about son, wife, friends, animals, body and home? Oh mind, knowing these to be fleeting! Leave it from a distance and worship Parvati Vallabh Shri Shankar as per Guru's words for spiritual experience.

    इस धन, घोड़े, हाथी और राज्यादि की प्राप्ति से क्या ? पुत्र, स्त्री, मित्र, पशु, देह और घर से क्या ? इनको क्षणभंगुर जानकर रे मन ! दूर ही से त्याग दे और आत्मानुभव के लिये गुरुवचनानुसार पार्वतीवल्लभ श्रीशंकर का भजन कर ।

  3. 13

    आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं प्रत्यायान्ति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः। लक्ष्मीस्तोयतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवितं तस्मान्मां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना।।१३।।

    Age is getting wasted day by day, youth is diminishing day by day; the past days do not return; time is devouring the entire world. Lakshmi is as fickle as the waves of water; life is as fickle as lightning; hence, O Shankara who loves those who surrender to me! Please protect me now! Please protect me.

    देखते-देखते आयु नित्य नष्ट हो रही है, यौवन प्रतिदिन क्षीण हो रहा है; बीते हुए दिन फिर लौटकर नहीं आते; काल सम्पूर्ण जगत् को खा रहा है । लक्ष्मी जल की तरंगमाला के समान चपल है; जीवन बिजली के समान चंचल है; अतः मुझ शरणागत की हे शरणागतवत्सल शंकर ! अब रक्षा करो ! रक्षा करो ।

  4. 14

    करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्। विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥१४।।

    Whatever sins have been committed by hands, feet, speech, body, deeds, ears, eyes or even by the mind, be they prescribed or unprescribed, O ocean of compassion Mahadev Shambhu! Please forgive them all. Victory to you, victory to you.

    हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणा- सागर महादेव शम्भो ! क्षमा कीजिये । आपकी जय हो, जय हो ।