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आदौ कर्मप्रसङ्गात् कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां विण्मूत्रामेध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदाः। यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।१।।
First the sins committed in connection with work land me in my mother's womb, then the gastric fire is greatly tormented by the impure feces and urine. Who can describe the pains that keep troubling me there? O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my crime! Forgive me.
पहले कर्मप्रसंग से किया हुआ पाप मुझे माता की कुक्षि में ला बिठाता है, फिर उस अपवित्र विष्ठा-मूत्र के बीच जठराग्नि खूब सन्तप्त करता है । वहाँ जो-जो दुःख निरन्तर व्यथित करते रहते हैं उन्हें कौन कह सकता है ? हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो ।
- 2
बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा नो शक्तश्चेन्द्रियेभ्यो भवगुणजनिता जन्तवो मां तुदन्ति। नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शङ्करं न स्मरामि क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।२।।
There was a lot of pain in childhood, the body was covered with urine and feces. And there was a constant desire to breastfeed; the senses did not have the strength to do any work; various creatures born from the Shaivite Maya used to bite me; I used to cry due to various diseases and other sufferings, (even at that time) I could not remember Shankar, so O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my crime! Forgive me.
बाल्यावस्था में दुःख की अधिकता रहती थी, शरीर मल-मूत्र से लिथड़ा रहता था । और निरन्तर स्तनपान की लालसा रहती थी; इन्द्रियों में कोई कार्य करने की सामर्थ्य न थी; शैवी माया से उत्पन्न हुए नाना जन्तु मुझे काटते थे; नाना रोगादि दुःखों के कारण मैं रोता ही रहता था, (उस समय भी) मुझसे शंकर का स्मरण नहीं बना, इसलिये हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो।
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प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरैः पंचभिर्मर्मसन्धौ दष्टो नष्टो विवेकः सुतधनयुवतिस्वादसौख्ये निषण्ण:। शैवीचिन्ताविहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।३।।
When I reached the age of youth and became an adult, five snakes of sensual pleasures bit me in my vital spots, due to which my wisdom got destroyed and I started enjoying the pleasures of wealth, wife and children. Even at that time, forgetting your thoughts, my heart was filled with great pride and arrogance. Therefore, O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my crime! Forgive me.
जब मैं युवा-अवस्था में आकर प्रौढ़ हुआ तो पाँच विषयरूपी सर्पों ने मेरे मर्मस्थानों में डंसा (काटा) , जिससे मेरा विवेक नष्ट हो गया और मैं धन, स्त्री और सन्तान के सुख भोगने में लग गया । उस समय भी आपके चिन्तन को भूलकर मेरा हृदय बड़े घमण्ड और अभिमान से भर गया । अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो ।
- 4
वार्द्धक्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढिहीनं च दीनम्। मिथ्यामोहाभिलाषैर्भ्रमति मम मनो धूर्जटेर्ध्यानशून्यं क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।४।।
Even in old age, when the senses have become weak, the intellect has become dim and the body has become worn out due to divine troubles, sins, diseases and separations, my mind has become weak and sad due to false attachment and desires and is devoid of any illusion from the thought of Shri Mahadevji. Therefore, O Shiva! O Shiva! O Shankar! O Mahadev! O Shambho! Now forgive my crime! Forgive me.
वृद्धावस्था में भी, जब इन्द्रियों की गति शिथिल हो गयी है, बुद्धि मन्द पड़ गयी है और आधिदैविकादि तापों, पापों, रोगों और वियोगों से शरीर जर्जरित हो गया है, मेरा मन मिथ्या मोह और अभिलाषाओं से दुर्बल और दीन होकर (आप) श्रीमहादेवजीके चिन्तनसे शून्य ही भ्रम रहा है। अतः हे शिव! हे शिव! हे शंकर! हे महादेव! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो।
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नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गे सुसारे। नास्था धर्मे विचारः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।।५।।
Due to being filled with extremely deep penances at every step, I cannot even perform smartakarmas, then what can I say about those shrutakarmas which are prescribed for Dwijakul as the path to attain Brahman? There is no faith in religion and there is no thought about listening and meditation, how can Nididhyasana (meditation) be done? Therefore O Shiva! Hey Shiva! Hey Shankar! Hey Mahadev! Hey Shambho! Now forgive my crime! Excuse me.
पद-पदपर अति गहन प्रायश्चित्तोंसे व्याप्त होनेके कारण मुझसे तो स्मार्तकर्म भी नहीं हो सकते, फिर जो द्विजकुलके लिये विहित हैं, उन ब्रह्मप्राप्तिके मार्गस्वरूप श्रौतकर्मोंकी तो बात ही क्या है ? धर्ममें आस्था नहीं है और श्रवण-मननके विषयमें विचार ही नहीं होता, निदिध्यासन (ध्यान) भी कैसे किया जाय ? अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो! क्षमा करो ।