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ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन् मामनुस्मरन् । यः प्रयाति त्यजन् देहं स याति परमां गतिम् ॥ १ ॥
The person who leaves his body while reciting this one syllable 'Om' (Brahm) and remembering 'My God', attains the supreme state.
जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा (ईश्वर का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है) वह परम गति को प्राप्त होता है ।
- 2
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च । रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः ॥ २ ॥
Arjun said - It is appropriate that the world becomes very happy with your Kirtan (God) and Anurag also gets it because God is the soul of everyone and the friend of all the ghosts. Frightened demons run in all directions and the entire community of siddhas salute you.
अर्जुन ने कहा - यह योग्य ही है कि आपके कीर्तन (ईश्वर) से जगत् अति हर्षित होता है और अनुराग को भी प्राप्त होता है क्योंकि ईश्वर सबका आत्मा और सब भूतोंका सुहृद् है। भयभीत राक्षस लोग समस्त दिशाओं में भागते हैं और समस्त सिद्धगणों के समुदाय आपको नमस्कार करते हैं।
- 3
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्। सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥ ३ ॥
He has arms and legs on all sides, eyes, head and mouth on all sides and ears on all sides; He is present in the world pervading everyone.
वह सब ओर हाथ-पैर वाला है और सब ओर से नेत्र, शिर और मुखवाला तथा सब ओर से श्रोत्रवाला है; वह जगत् में सबको व्याप्त करके स्थित है।
- 4
कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः । सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥ ४ ॥
One who remembers the man who is omniscient, ancient (Puraan), controller of all, sustainer of all even the subtlest, unthinkable, light like the sun and the element beyond (Avidya) darkness.
जो पुरुष सर्वज्ञ, प्राचीन (पुराण), सबके नियन्ता, सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर सबका धारण-पोषण करनेवाला, अचिन्त्यरूप, सूर्य के समान प्रकाश रूप और (अविद्या) अन्धकार से परे तत्त्व का अनुस्मरण करता है ।
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ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ ५ ॥
Shri Bhagwan said - The one who knows the worldly tree which is called Avyaya and has the leaves of the Vedas, which has its root at the top and branches at the bottom, is the one who knows the entire Vedas.
श्रीभगवान् बोले -- ऊपरकी ओर मूलवाले तथा नीचेकी ओर शाखावाले जिस संसाररूप अश्वत्थवृक्षको अव्यय कहते हैं और वेद जिसके पत्ते हैं, उस संसारवृक्षको जो जानता है, वह सम्पूर्ण वेदोंको जाननेवाला है।