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सुषुप्तस्थानः प्राज्ञो मकारस्तृतीया मात्रा मितेरपीतेर्वा मिनोति ह वा इदं सर्वमपीतिश्च भवति य एवं वेद ॥११॥
The Sleeper, Prajna, the Lord of Wisdom, He is M, the third letter, because of Measure and Finality; he that knoweth Him for such measureth with himself the Universe and becometh the departure into the Eternal.
सुषुप्त-अवस्थावाला, 'प्राज्ञ'-'प्रज्ञा का ईश्वर' मापने के कारण तथा 'अन्तिमावस्था' के कारण, 'वह' है 'मकार', तृतीय वर्णाक्षर; जो 'उसे' इस प्रकार जानता है वह अपने साथ सम्पूर्ण 'विश्व' को माप लेता है एवं 'ब्रह्म' में लीन हो जाता है।
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अमात्रश्चतुर्थोऽव्यवहार्यः प्रपञ्चोपशमः शिवोऽद्वैत एवमोङ्कार आत्मैव संविशत्यात्मनात्मानं य एवं वेद य एवं वेद ॥१२॥
Letterless is the fourth, the Incommunicable, the end of phenomena, the Good, the One than Whom there is no other; thus is OM. He that knoweth is the Self and entereth by his self into the Self, he that knoweth, he that knoweth.
चतुर्थ है 'अवर्णाक्षर' (अमात्रा), 'अव्यवहार्य', इस (सृष्टि) प्रपञ्च का उपशम अर्थात् अन्त, परम मंगलकारी-'शिव', 'अद्वैत' (अद्वितीय) ऐसा है 'ओम्'। 'आत्मा' ही आत्मा के द्वारा 'आत्मा' में प्रवेश करके 'आत्मा' को जानता है, जो यह जानता है, वही यह जानता है।