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यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य-स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च । गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिः स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥११॥
If a person recites this with concentration, he becomes great in all the worlds. He attains the eight siddhis in his home and also attains salvation after death; even the gods do not know this form of yours.
यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकों में महान् हो जाता है। उसे अपने घर में आठों सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और मृत्यु के पश्चात् मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ।