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चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः । कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥७॥
(O Mother) (Lord Shankara), who is smeared with chitabhasma (ashes from the cremation ground), whose food is the poison, whose clothes are the directions, … who has matted hairs on his head, who wears the garland of the king of snakes around his neck; (inspite of all this he is called) PashupatI (the lord of the pashus or living beings), he carries a begging bowl of skull in his hand but is worshipped as Bhutesha (the lord of the bhutas or beings) and got the title of Jagadisha eka (One lord of the universe), … O Bhavani, all this is because of the result of your panI grahana (accepting your hand in marriage).
भवानी ! जो अपने अंगो में चिता की राख लपेटे रहते हैं, जिनका विष ही भोजन है, जो दिगंबरधारी {नग्न रहनेवाले} हैं, मस्तक पर जाता और कंठ में नागराज वशुकी को हार के रूप में धारण करते हैं तथा जिनके हाथ में कपाल सोभा पाता है , ऐसे भूत्नात पशुपति भी जो एक मात्र `जगदीश’ की पदवी धारण करते हैं, इसका क्या कारन है ? यह महत्व उन्हें कैसे मिला ? यह केवल तुम्हारे पाणिग्रहण की परिपाटी का फल हैI अर्थात – तुम्हारे साथ विवाह होने से उनका महत्व बढ़ गया हैI