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समस्तामरेशम् द्विरेफाभ केशं जगद्विम्बलेशम् हृदाकाशदेशम्। सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहम् सुवैकुन्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ।। ६ ।।
I worship him, who is the lord of all devas and has a pretty hair frequented by bees. This earth is the part of him and has a body as clear as the sky. Shri Hari has a holy mien and has no attachments to this world. His home is named as Vaikunta. ।। 6 ।।
जो सभी देवों के स्वामी हैं, काली मधु मक्खी के समान जिनके केश (बालों) का रंग है, पृथ्वी जिनके शरीर का हिस्सा है और जिनका शरीर आकाश के समान स्पष्ट है। जिनकी देह (शरीर) सदा दिव्य है, जो संसार के बंधनों से मुक्त हैं, बैकुंठ जिनका निवास है, उन भगवान् विष्णु को में बारम्बार भजता/ती हूँ । ।। ६ ।।
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सुरालीबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठम् । सदा युद्धधीरं महावीरवीरम् महाम्भोधितीरम् भजेऽहं भजेऽहं ।। ७ ।।
I worship him, who is the strongest among devas and greatest among the three worlds. Prabhu Hari is the heaviest among heavy people and always heroic in battles. The one who is the great hero of heroes and takes you across the sea of life. ।। 7 ।।
जो सुरों (देवताओं) में सबसे बलशाली हैं, त्रिलोकों में सबसे श्रेष्ठ हैं, जिनका एक ही स्वरुप है (परमात्मा या परब्रह्म रूप)। जो युद्ध में सदा वीर हैं, जो महावीरों में भी वीर हैं, जो सागर के किनारे पर वास करते हैं, उन भगवान् विष्णु को में बारम्बार भजता/ती हूँ। ।। ७ ।।
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रमावामभागम् तलानग्ननागम् कृताधीनयागम् गतारागरागम्। मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौगैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ।। ८ ।।
I worship him, who keeps Lakshmi on his left side and can be approached by Yagas. Shri Krishna is not interested in anything and also carried the Govardhan Mountain. He is pure music to great sages and always served by Devas, who is above all beings. ।। 8 ।।
जिनके वाम (बाएं) भाग में लक्ष्मी विराजित होती हैं, जो नग्न नाग पर विराजित हैं, जो यज्ञों से प्राप्त किये जा सकते हैं और जो राग-रंग से मुक्त हैं। ऋषि-मुनि जिनके गीत गाते हैं, देवता जिनकी सेवा करते हैं और जो गुणों से परे हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता/ ती हूँ। ।। ८ ।।
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इदम् यस्तु नित्यं समाधाय चित्तम् पठेदष्टकम् कंठहारं मुरारेः । स विष्णोर्विशोकं ध्रुवम् याति लोकम् जराजन्म शोकं पुनर्विदन्ते नो ।। ९ ।।
Shri Krishna who reads with peace. The octet of Hari, which is the destroyer of sorrow. He would definitely reach the world of Vishnu which is always without sorrow. He would never undergo sorrow ever. ।। 9 ।।
भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है, जो भी इसे सच्चे मन से पढता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुःख, शोक, जन्म-मरण से मुक्त होता है इसमें कोई संदेह नहीं है। ।। ९ ।।